दीदार ए इश्क़
खुद आईने को मैं ने गो बार बार देखा ॥
पर जब भी खुद को देखा तो बेक़रार देखा ॥
हो कर बहुत परेशां देखा जो दिल की जानिब ॥
दामन को अपने दिल के बस तार तार देखा ॥
मायूस हो के मैं ने जब आँख बंद कर ली ॥
दिल मैं छुपा हुआ फिर जलवा ए यार देखा ॥
तेरी बज़्म मैं कभी मैं अगर आ गया अचानक ॥
तो ग़ैर से ही तेरी आँखों को चार देखा ॥
बड़ी मिन्नतों से पाया जिसे “सरफ़राज़” मैं ने ॥
सर ए राह जाते जाते उसे बार बार देखा ॥
सैयद सरफ़राज़ अली
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