दिशाहीन होती युवापीढ़ी
जब किसी के ह्रदय की वेदना अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाती है तो साधारण व्यक्ति हो या कितना गंभीर इंसान ही क्यों न हो हर कोई अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने के लिए आतुर हो जाता है |
आज जब मैं समाज की स्थिति और उसकी संस्कृति एवं परम्परा तथा संस्कारों की ओर ध्यान देता हूँ तो, अनायास ही मैं अतीत में चला जाता हूँ | उस समय इतनी चकाचौंध करने वाली तमाम आकर्षण पूर्ण सुबिधाएं न थी | हालांकि उस समय इतनी उच्च स्तर की शिक्षा और शिक्षण संस्थाएं भी नहीं थी | किन्तु नि:संदेह बच्चों में संस्कार था | बच्चे अपने माता-पिता ही नहीं बल्कि पड़ोसियों की भी इज्जत और आदर करते थे | यही नहीं कहीं गलती से रास्ते में कोई बूढ़ा या असहाय दिख जाता थो तो पक्का उसकी मदद करते थे | तब और अब में इतना अंतर क्यों हुआ, जब मैने इसका कारण जानने की कोशिश की तो लोग कहते मिले, कि ज़माना बदल गया है ‘शर्माजी’ | क्या संस्कार को भूल जाना ही विकास है ? क्या आज की नई पीढ़ी माता-पिता का तिरस्कार या उनकी अवहेलना करके उनकी बातें न मानने में ही अपना विकास समझ रही है ? यदि ऐसा है तो मेरे विचार से यह पूर्णतया गलत है | क्योंकि बिना माता-पिता के आशीष के तो भगवान् भी किसी का साथ नहीं देता | अक्सर देखने को मिलता है, कि बच्चों को उत्तम सुबिधाएं प्रदान करने के लिए माता-पिता अपने लिए सारी चीजों का त्याग करके दिन रात कठिन से कठिन काम करते हैं | उनकी इच्छा होती है कि जो कुछ भी अभाव उन्होंने अपने जीवन में सहा और देखा है, उनके बच्चों को वह न झेलना पड़े | किन्तु आज की युवापीढ़ी उनके त्याग और श्रम को महत्व न देते हुए तब हद पार कर देती है जब वे माता-पिता के द्वारा किये जाने वाले कामों को यह कहकर याद दिलाते हैं, कि जो आप कर रहे हो वो आपका फ़र्ज है |
बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि आज हमारी युवापीढ़ी दिशाहीन हो चुकी है | वह न अपनी सभ्यता और संस्कृति का सम्मान कर पा रही है, और न ही उसे पाश्चात्य शैली की वास्तविकता का पता है | बस वह उसकी चकाचौंध की तरफ़ आकर्षित हो कर पीछे-पीछे भाग रही है | दिखावा आज हक़ीकत पर हावी होता जा रहा है | लोग संबंध, फ़र्ज और सेवा भाव जैसी भावना तथा भावनापूर्ण कार्य भूलते जा रहे हैं |
बस सभी के लिए पैसा ही इन सब पर भारी होकर सर्वोपरि होता जा रहा है | भावना के साथ-साथ लोगों के विचार भी संकुचित होते जा रहे हैं |
मेरा यह मानना है कि आज की युवापीढ़ी बहुत उर्जावान है, लेकिन वह उर्जा विकास की ओर उन्मुख नहीं हो रही है | क्योंकि आज की युवापीढ़ी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गौर नहीं करती वह स्वयं मात्र के लिए ही सबकुछ करना चाहती है | विकास बिना समाज, सभ्यता और संस्कृति की उन्नति के संभव नहीं होता, क्योंकि विकास चंद लोगों का धनाढ्य होना नहीं होता | विकास का तात्पर्य मात्र खूब पैसा कमाना और ऐश्वर्य प्राप्त करना भी नहीं है | बल्कि सही रूप में विकास अपनी सभ्यता, संस्कृति के आधार पर आचरित होकर लोगों का सहयोग करके समाज की उन्नति में अपना हाँथ बटाना और इसी मार्ग पर चलने से स्वयं की, परिवार की, समुदाय की, समाज की और आखिर में राष्ट्र की उन्नति संभव है |
अंतत: मैं आशा करता हूँ, कि वर्तमान दिशाहीन हो रही युवापीढ़ी अपने आदर्शों की ओर उन्मुख होकर उसको प्राप्त करेगी और विकास की ओर अग्रसर होगी |
पं. कृष्ण कुमार शर्मा “सुमित”