*दिव्य*
दिव्य
अमोल रत्न देव दत्त भव्य सत्य सत्व है।
जिसे मिला वही हुआ सुजान विज्ञ तत्व है।
नहीं जिसे मिला वही अभाग्य का प्रतीक है।
सदैव भाग्यमान दिव्य धन्य भाग ठीक है।
सदैव देव देवि शक्ति से मिला प्रसाद है।
पुनीत कृत्य धर्म का छिपा अमर्त्य स्वाद है।
सुदिव्य लोक रश्मि का मिला अनंत दान है।
रहे सदैव देव लोक में सुविज्ञ ज्ञान है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।