दिव्य काशी
“बम बम भोले की ये नगरी
अनंत अटल अविनाशी काशी l
देखो कैसे चमक रही है ,
बाबा विश्वनाथ की काशी l l
सदियों से जिसकी दीवारें ,
जीर्णोद्धार माँग रही थी l
अस्सी घाटों पे लहराती गंगे ,
गंगाधर को ढूंढ रही थी l l
देखो अब परिवर्तन की धारा,
कैसे बह रही चारों ओर l
अविरल बहती गंगा माता ,
और जलधारा बोले बम बम बोल l l
आज पूर्वज तृप्त हुए है ,
देवलोक भी हर्षित है l
काशी की ऎसी आभा देखकर ,
कैलाश भी हो गए विचलित हैं l l
शंकर का डमरू भी आहलादित ,
और नन्दी भी मस्त मगन हैं आज l
मानो अम्बर भी झूम रहा हो ,
धरती पर आने को आज ll
जन्म भी पावन और मृत्यु भी पावन ,
इस नगरी का कण कण पावन l
पाप मुक्त हो जाते जन जन ,
जो करते बाबा का अर्चन l l
संकल्प,कर्म,ज्ञान,सिद्धि ,
और मोक्ष का संगम काशी है l
जीवन और भस्म का भेद मिटा दे ,
वो केवल शिव की नगरी काशी है ll