— दिव्यांग —
पत्नी लाचार कि चल नहीं सकती
पति अपनी आँखों से लाचार है
हाथो में है विरासत कल की
न जाने किस का कौन तलबगार है ??
एक दुप्पटे के सहारे पत्नी संग
रास्ते को मिलकर तय कर रहे
कितना है अटूट विश्वाश दोनों का
मिलकर जीवन का सफर काट रहे !!
इक सबक दे रहे हैं आँखों पैरों वालों को
लिव इन रिलेशन से जो जिस्म खा रहे
हम दोनो कहीं से कहीं तक दिव्यांग नहीं
ऐसा सन्देश सारे समाज को पहुंचा रहे !!
किस तह तक पहुँच गया है समाज
खुली आँखों से प्रेम को गर्त में पहुंचा रहे
पल में काट कर , नोच कर, जिस्म को
अपनी हवस मिटा कर पल में उड़ा रहे !!
सीखो अगर सीखना है इन दोनों से
प्रेम की असली परीक्षा क्या होती है
पल में छोड़ सकते थे हाथ इक दूजे का
पर नहीं , जीवन जीना यह सीखा रहे !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ