दिव्यमाला अंक 22
गतांक से आगे……
दिव्य कृष्ण लीला ….अंक 22
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एक दिवस यूँ खेल खेल में , कान्हा माटी निगल गया।
फिर क्या था माता यशुमति ने, तुरत कान्ह को दखल दिया।
बोली नटखट मुझको बतला,क्या तेरे मुँह में सकल गया।
खोल दिखाया कान्हा ने मुख ,,मुखमण्डल ही बदल गया।
रही देखती अचरज से , निकली जान — कहाँ सम्भव।
हे पूर्ण कला के अवतारी….तेरा यशगान कहाँ सम्भव ?……..43
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इस पर भी बनते प्रश्न बड़े,क्यो कान्हा माटी खाई।
दूध दही जो खानेवाला,उसको रज क्योंकर भाई।
ऐसा क्या था मुंह के भीतर,चकित भई यशुमति माई।
यह तो जाने केवल यसुमति,या जाने फिर कृष्ण कन्हाई।
जो भी हो लेकिन हमको ,करना समाधान ..कहाँ सम्भव।
हे पूर्ण कला के अवतारी तेरा गुणगान………?. 44
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क्रमशः अगले अंक में
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कलम घिसाई
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