दिव्यमाला अंक 20
★गतांक से आगे★…….★.अंक 20★
****************************
अब तो माता चिंतित रहती ,जरा जरा सी बातों में।
थोड़ी सी जो आहट होती ,झट उठ जाती रातों में।
तन्मय होकर पता पूछती , मिलती भी मुलाकातों में।
बार बार शंकित हो उठती,क्या है इसके हाथों में।
खुद से ज्यादा करती अब लाला का ध्यान,कहाँ सम्भव।
हे पूर्ण कला के अवतारी- तेरा यशगान — कहाँ सम्भव?——-39-
*******************************
होने लगे आघात कृष्ण पर, थोड़े थोड़े अंतर में।
इक अनजाना भय व्याप्त गया,नंद देव के अंतर में।
बोले सुन लो यसुमति देवी, बात उठी मेरे उर में।
गोकुल हमे छोड़ना होगा,कुछ ही दिन के अंदर में।
कान्हा के गोकुल में लगते , संकट में प्रान .. कहाँ सम्भव।
हे पूर्ण कला के अवतारी.तेरा यशगान… कहाँ सम्भव।…?…40
*★★
क्रमशः —अगले अंक में
*★★
कलम घिसाई
9414764891