दिवाली मुबारक नई ग़ज़ल विनीत सिंह शायर
किसी के हाथ में जैसे कोई ख़ैरात आई है
बजी सहनाइयाँ घर उसके बारात आई है
तुम्हे गर भूल ना जाते शराबी बन गए होते
तुम्हारी याद भी ज़ालिम तुम्हारे साथ आई है
सोते हैं दुपट्टे को तेरे सीने लगा करके
यही वो चीज है जो बस हमारे हाथ आई है
ज़िक्र करता फिरू तेरा, मुझको कहाँ फ़ुरसत
बातों बात में ही बस तुम्हारी बात आई है
दिवाली हो मुबारक ज़िंदगी गुलज़ार है जिनकी
हमारे हाथ तो ये ज़िंदगी बर्बाद आई है
~ विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar