दिल है पाषाण तो आँखों को रुलाएँ कैसे
दिल है पाषाण तो आँखों को रुलाएँ कैसे
अपनी तक़दीर के लिक्खे को मिटाएँ कैसे
जब धड़कते हैं वो साँसों में हमारी हरदम
ख़ुद को यादों से भी आज़ाद कराएँ कैसे
जब लिखा है ही नहीं साथ हमारा रहना
उनको हाथों की लकीरों में बनाएँ कैसे
आता पढ़ना है उन्हें आँखें हमारी देखो
दर्द हम उनसे छुपाएँ तो छिपाएँ कैसे
बंद आँखों में छिपा रक्खा है उनको हमने
वो किसी को भी नज़र आएँ तो आएँ कैसे
ये ज़माना ही बना देगा फ़साना इसका
नाम हम उनका ज़ुबां पर बता लाएँ कैसे
जो छिड़कता है नमक ज़ख्मों पे हमारा बनकर
उससे याराना निभाएँ तो निभाएँ कैसे
जब ये कर बैठा है सीधी ही बगावत हमसे
‘अर्चना’ दिल को मनाएँ तो मनाएँ कैसे
डॉ अर्चना गुप्ता
01.11.2024