दिल है खुद से खफा खफा
दिल है खुद से खफा खफा
हर शख्स दिखा जुदा जुदा
बेरहमी की हद देखो यहाँ
हर कोई यहाँ सहमा सहमा
जो भी आया वो चल दिया
ना दिखा कोई रूका रूका
चुपचाप तमाशा हैं देख रहे
तमाशबीन है जगहां जगहां
बेचारगी की बढ़ रही इंतहां
बेचारा है दिखा खड़ा खड़ा
अनुराग है यहाँ सिमट रहा
अनुरागी है बेवफा बेवफा
भाषाशैली में भी बदलाव है
जो भी मिला,वो रुखा रुखा
स्वार्थ इंसानियत को ले डूबा
स्वार्थी दिख रहे हैं यहाँ वहाँ
मानवता हुई यहाँ है विलुप्त
मानव स्तर है यहाँ गिर यहाँ
प्रेम भावना का अंत हो रहा
नफरतों का जहर उगल रहा
संस्कृति-संस्कार किनारे पर
मानव निर्माण यहाँ रूक रहा
खुशी कहीं ना आ रही नजर
दिख रहा है यहाँ गमगीन सा
सुखविंद्र यहाँ पर मजबूर सा
चल नहीं रहा बस मेरा यहाँ
-सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैधल)
9896872258