दिल से ….
न लफ़्ज़ों की ज़रूरत न आँखों का इशारा
गुफ़्तगू थी रूह की इश्क़ नायब था हमारा
रूठने मनाने किसी बहाने तो आ मेरे हमनवा
ये कैसी काहिली ये क्या हाल हुआ तुम्हारा
इश्क़ के दरख़्त तले पसरी सुकूँ की छाँव
दहशत में परिंदे शज़र कटने को है दोबारा
बेबाक़ किताब सा मैं बेफ़िकर कहानी सी तुम
फिर क्यों दबा रह गया सफ़हों में गुलाब बेचारा
रेखांकन।रेखा