दिल से…
मैं तो समझा डूबने पर संभालेगा वह,
क्या खबर थी पत्थर भी डालेगा वह।
माना मुझे एक बार को झुका लेगा वह,
मगर खुद को कैसे बड़ा बना लेगा वह।
घुट घुट के यूं कहीं मर ही न जाऊं मैं,
खेल खत्म हो तो आंसू बहा लेगा वह।
ठोकर लगने से आएगी अक्ल उसको,
हक बात है उसको अभी और टालेगा वह।
शायद मुझसे बेहतर मोती मिल ही जाए,
अभी समंदरों को और को खंगालेगा वह।
जानता है वह मुझ पर हक है सिर्फ उसका,
बिगड़े हालात में भी मुझे बुला लेगा वह।
आज भी इस उम्मीद पर दुनिया कायम है,
यकीन है यह मुझे दिल में बसा लेगा वह।
© अरशद रसूल