दिल से दिल तो टकराया कर
कौन कहता है, हाथ से हाथ मिलाया कर,
हाथ न सही दिल से दिल तो टकराया कर।
छत की धूप मायूस होकर लौट जाती है,
छत पर जाके कपड़े कभी तो सुखाया कर।
भले ही उससे सामने होकर बात मत कर,
फोन पे ही अपने अहसास तो जताया कर।
ख़ुद को अब किसी से इतना भी न बचा,
कम से कम बारिश में तू भीग तो जाया कर।
कोई नहीं लाएगा आस्माँ से तारे तोड़कर,
खुद को भी तू कभी तो जगमगाया कर।
कभी तो काम ले इन सुर्ख गुलाबी होठों से,
बात करते समय कभी तो मुस्कराया कर।
रस्तोगी कहे कभी तो दीदार हो तेरे हुस्न का,
बस इस चेहरे से तू पर्दा कभी तो उठाया कर।
आर के रस्तोगी, गुरुग्राम