– दिल वही खामोशियां बोता रहा।
– दिल वही खामोशियां बोता रहा।
गिरह-
रात थी गहरी बहुत,मोम सा जल रहा था हर लम्हा,
बड़ी शिद्दत से,ये दिल वही खामोशियां बोता रहा।
१)
इश्क नहीं बनता क्यों ज़ीस्त, किसी की कभी,
यही सोचकर खामखां,मुहब्बत में दिल रोता रहा।
२)
नहीं थी ख़ाक ये ज़िंदगी,गुज़री मगर ख़ाक उड़ाते ही,
बाद तेरे बंदे इस दुनिया में,न जाने क्या क्या होता रहा।
३)
नहीं तद्वीर ली पहले और नई तस्वीर बना डाली,
सोच फ़िरदौस ज़ीस्त को,तू चादर तान सोता रहा।
४)
आम की चाहत तुमको थी, तो आम के बाग लगाते,
बिना सोचे बिना समझे,तू क्यों बबूल बोता रहा।
५)
न जाने कितने ही काफ़िर,वतन को लूट खा गए,
थी कहां वतन परस्ती तेरी,जो तू मूक श्रोता रहा।
६)
कहूं क्या अनजाने में नीलम,अपना विश्वास खोता रहा
मरु की गहराई में न जाने क्यों कुछ बीज बोता रहा।
नीलम शर्मा