दिल ये पहले से सजा रक्खा है /
दिल ये पहले से सजा रक्खा है ।
उनको घर पै जो बुला रक्खा है ।
वो तो आएँगे हवा की मानिंद,
इसलिए द्वार खुला रक्खा है ।
खिड़कियाँ साफ नहीं हैं,उनमें
साफ सीसे को लगा रक्खा है ।
फर्श पर धूल बहुत है,लेकिन
उसपै कालीन बिछा रक्खा है ।
मेज जो साफ नहीं है,उस पर
साफ कपड़े को चढ़ा रक्खा है ।
कोई दीपक नहीं मेरे घर में
पूरा सूरज ही जला रक्खा है ।
यूँ तो उजड़ा है चमन,पर घर में
फूल माली से लिया रक्खा है ।
कुछ बचा ही नहीं सका अब तक
इसलिए वक्त बचा रक्खा है ।
कोई ‘ईश्वर’ है जिसने ईश्वर को
आपका हाल सुना रक्खा है ।
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी