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22 Apr 2021 · 1 min read

दिल में रहकर भी दिल से दूर थी वो।

न जाने कौन सी मद में चूर थी वो।
न जाने किसलिए मगरूर थी वो।
खुदा कसम मैंने उसे संभाला था
दिल में रहकर भी दिल से दूर थी वो।

मैं आज भी मुंतजिर हूं उसे पाने को
कैसे बताऊं कि मेरी गुरूर थी वो।
उसे लत था लोगों को आजमाने की
के जैसे हवाओं की शुरूर थी वो।

अब तो बीते हैं वर्षों उसे चाहते हुए
मगर है फासले शायद मजबूर थी वो।
उसके रहते मैं गैर का हो जाऊंगा
उसे शक है मेरे गजलों से काफूर थी वो।

उसे आज भी शक है मेरे वफ़ा पर तो
लगे गले फिर देखे कि क्या फितूर थी वो ?
सुपुर्द ए जां कर देता मैं उसके “दीपक”
मगर लौटकर भी दिल से दूर थी वो।

दीपक झा रुद्रा

Language: Hindi
1 Like · 3 Comments · 286 Views
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