“ दिल में बसना हो तो संवाद करें “
“ दिल में बसना हो तो संवाद करें “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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निरंतर डिजिटल मित्रों की बाढ़ अपने फेसबूक के रंगमंचों पर फैल जाना हमें असहज नहीं करते ! मित्रों की बाढ़ की प्रतीक्षा हरेक व्यक्ति की चाह होती है ! हम अपने सीमित परिधियों में सिकुड़ कर रहना नहीं चाहते ! अपने पंखों के सहारे हम द्रुत गति से क्षितिज के छोर तक पहुँचना चाहते हैं ! यहाँ ना सीमाएं होतीं हैं , ना उम्र का तकाजा , ना कोई भेद -भाव , ना धार्मिक विचारधाराओं का बंधन ,बस हम सारे विश्व को अपने आगोश में लेना चाहते हैं ! अब भाषाएं दीवार नहीं बन सकती है ! विश्व की समस्त भाषाओं का अनुवाद पलक झपकते हो जाते हैं ! दूरियाँ मिटने लगीं ! हम बहुत निकट होते गए ! हमारी हिन्दी ,मैथिली और विभिन्य क्षेत्रीय भाषाएं विश्व के तमाम लोग उसे पढ़ते हैं और अपनी समालोचना से एक दूसरे को यदा -कदा तृप्त करते रहते हैं ! बहुत से लोगों में अकर्मण्यता की बू तक नहीं पहुँच पायी है ! उनके प्रतिउत्तर और टिप्पणी से हृदय गदगद हो जाता है ! “Nearer the church ,further from God “ —कहाबत सिर्फ अपने फेसबूक डिजिटल मित्रों पर लागू होता है ! हम बड़े आत्मीयता से फ्रेंड रीक्वेस्ट भेजते हैं और एक्सेप्ट भी करते हैं ! अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन भी करते हैं ! पर यह मित्रों की बाढ़ कभी -कभी हृदय को आहत कर जाती हैं जब उनका सानिध्य सिर्फ अंकों में ही सिमट कर रह जाती हैं ! उनकी तस्वीर ही हम निहारा करते हैं ! डिजिटल मित्रता एक मात्र संवाद पर ही आधारित रहती है ! सहयोग ,समान विचारधारा ,मिलना -जुलना इत्यादि तो दिवा -स्वप्न ही रहते हैं ! बस संवाद के माध्यम से ही हम निकटता का आभास करते हैं ! टाइम लाइन पर हम किन्हीं को कुछ लिख नहीं सकते ,टिप्पणियों का जवाब वो देते नहीं और मेसेंजर को पढ़ते नहीं तो संवाद रहित मित्रता आखिर चलेगी कैसे ? व्यस्तता का बहाना क्षणिक हो सकता है परंतु इसे हर क्षण स्वीकार नहीं कर सकते ! इसी अकर्मण्यता से आहत होकर मित्रता का ग्राफ अवनति के तरफ अग्रसर होने लगता है ! कल तक हमारी तस्वीरें फेसबूक के दीवारों पर लटकी रहतीं थीं और आज गायब ! वैसे उनलोगों को आभास तनिक भी नहीं हो पाता है कि हमारी अकर्मण्यता और संवाद रहित भंगिमाओं से लोग आहत होते हैं ! वॉलेन्टीयर रिटाइरमेंट तो ये लेते नहीं हैं ! इन्हें चुन- चुनके फेसबूक के रंगमंचों से “कॉम्पलसरी रिटाइरमेंट “ भेजा जाता है ! स्पष्ट शब्दों में कहें तो उन्हें डिलीट, अनफ्रेंड और ब्लॉक कर देते हैं ! संवाद के बिना डिजिटल मित्रता मात्र कुछ दिनों के लिए ही चल सकती है ! अतः हमारे दृष्टिकोण से ना टाइम लाइन ,ना मेसेंजर और ना कमेन्ट बॉक्स कभी आउट ऑफ बॉउन्ड था ना है और ना रहेगा ! आप लिखना चाहते हैं ,संवाद करना चाहते हैं तो आप का हरेक जगह स्वागत है ! पर ध्यान रहे वह संवाद शालीनता ,शिष्टाचार और मृदुलता के पगदंडियों से ना डगमगा जाए ! दूसरे के पोस्टों को ना पोस्ट करें ! जवाब में “ जय हो “इत्यादि का प्रयोग ना करें ! सकारात्मक भंगिमा के दो शब्द ही शीतलता प्रदान करती है ! स्टिकर छापके अपनी अकर्मण्यता को ना प्रदर्शित करें ! श्रेष्ठ हों या समतुल्य या कनिष्ट सबों को शब्दों से अभिवादन ,प्यार और स्नेह दें ! कोई कार्य असंभव नहीं है ! बस इच्छा होनी चाहिए !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत