लहर
दिल में कुछ इस कदर लहर सी उठती है ,
कुछ कहती भी है , पर कुछ समझ ना आती है,
एहसास के समंदर मे हम
डूबते – उभरते रहते हैं,
कुछ संभलते, कुछ उठते, फिर गिरते हैं ,
जज़्बातों की रौ बहती, बढ़ती ही जाती है ,
कभी थमती, कम नहीं होती है,
बहकती है , तो कभी-कभी बेकाबू सी हो जाती है ,
जिस पर कोई जोर नहीं चलता ,
उस पर बहने वाली जीस्त की कश्ती को
कोई साहिल नही मिलता ,
इस तरह ज़िंदगी के लम़्हे गुज़र जाते हैं,
लाख कोशिश पर भी हम कुछ ना कर पाते है।