दिल में एहसान फरामोश नहीं रह सकते
ग़ज़ल
बेख़बर , बेहया ,, बेहोश नहीं रह सकते
हम ग़लत बात पे “ख़ामोश” नहीं रह सकते
हर्फ़ आये न कहीं “अज़मत ए मयनोशी” पे
चंद क़तरों पे “बलानोश” नहीं रह सकते
गीदड़ों का यही कहना कि अब जंगल में
साँप रह सकते हैं “ख़रगोश” नहीं रह सकते
दिल में घर करते हैं दुख दर्द समझने वाले
दिल में “एहसान फ़रामोश” नहीं रह सकते
सारे क़ानून शरीफों के लिये बनते हैं
आप सच्चे हैं तो निर्दोष नहीं रह सकते
ताज हम बन के सरों पर ही सजे रहते हैं
हम किसी तौर भी पापोश नहीं रह सकते
छोड़नी पड़ती है कुछ लोगों की सोहबत आख़िर
“सुस्त रौ” लोगों में पुरजोश नहीं रह सकते
आप आंखों से पिलायेंगे, ये वअदा कीजे
हम तो अब “मयकदा बरदोश” नहीं रह सकते
ज़िंदगी के लिये कुछ ग़म भी ज़रूरी हैं “असद”
सिर्फ़ खुशियों से ” हमआग़ोश” नहीं रह सकते
असद निज़ामी
शब्दार्थ*
अज़मत ए मयनोशी- शराब पीने की बड़ाई, मदिरा पान का सम्मान।
बलानोश- ज़ियादा पीने वाला।
पापोश- जूता ।
सुस्त रौ- धीरे चलने वाला, काहिल।
पुर जोश- जोश से भरा हुआ, तेज़ रौ।
हमआग़ोश- गले लगा हुआ,साथ साथ।
मयकदा बरदोश- शराब ख़ाना कांधे पर उठाये हुये।