दिल बेदाग रखो
दिल बेदाग रखो,
चेहरा तो हर कोई बेदाग है चाहता,
पर दिल का ख्याल किसको है आता,
हर छोटी छोटी बात पे दिल को,
फरेब है भाता,
कितना मुश्किल है दिल को बेदाग रख पाना,
जब दिल ही है झूठ को खुली बाँहों से अपनाता,
सच का सामना करने से घबराता,
अपने ही अंतर्द्वंद्व से घिरता जाता,
दुनिया का फरेब भोले दिल को समझ ना आता,
इसी फरेबी दुनिया का अनुकरण करते जाता,
दिल बेचारा कहाँ बेदाग रह पाता…