“दिल बहता तब बनती कविता”
दिल बहता तब बनती कविता
दिल बहता तब बनती….
शब्द निकलता पीर सहारे ,
अस्क के मोती भरता भरता ,
दिल बहता तब बनती ……..
मीत मिलन की विकल वेदना,
विछुड़न के क्षितिजों पर जाकर,
चित्रलिखित मन हो जाता है,
प्रेम पथिक वह थकता थकता ।|
दिल बहता तब बनती…….
विरह राह पर चलते चलते
मन में यही सोचता रहता
बैठ मिलन के पास जाल में
काश व्यथा को मैं गुन पाता
लेकिन जब क्षण मिलन का आता,
कुछ न कहा बस सुनता रहता ।।
दिल बहता तब बनती कविता
दिल बहता तब बनती…..।
अमित मिश्र
जवाहर नवोदय विद्यालय नोंगस्टाइन
वेस्ट खासी हिल्स मेघालय