दिल तोङ दिया उस ने
ग़ज़ल
दिल तोङ दिया उसने वीरान किया दिल को।
कुछ इतने सितम ढाए बेजान किया दिल को।
मग़रूर तबीअत को दिल सौंप दिया मैंने।
क्या क्या न जतन करके परवान किया दिल को।
दिल जिससे बहल जाता दिल जिससे सुकूं पाता।
कब तूने फ़राहम वो सामान किया दिल को।
अब इससे ज़्यादा क्या मैं क़द्र करूँ तेरी।
“इक तेरे इशारे पर क़ुरबान किया दिया को”
फिर तेरी मुहब्बत ने इस को मिरे तोङा।
फिर तेरी मुहब्बत ने वीरान किया दिल को।
नज़रों से मुझे अपनी तूने ही गिराया है।
मैंने तो तिरी ख़ातिर ऐवान किया दिल को।
हर वक़्त मिरा दिल जो ख़ुश्बू से महकता है।
शायद कि अता तूने लोबान किया दिल को।
फूलों की तरह जिसमें काँटों को सजाते हैं।
ऐसा ही क़मर मैंने गुलदान किया दिल को।
जावेद क़मर फ़ीरोज़ाबादी