दिल तुम्हारे छिपा क्या मुझे ना पता।
दिल तुम्हारे छिपा क्या मुझे ना पता।
इश्क मैने किया तो निभाना भी था।।
तुम सलामत रहो ये फिकर थी सदा।
हर अदा का तुम्हारी दिवाना भी था।।
दूर परदेश जाना है तोहमत अगर ।
घर बनाना भी था तो कमाना भी था।।
खुद से वादा रहा इश्क तेरे लिए ।
चांद तारे जमीं में सजाना भी था।।
दिल तुम्हारा दुखे ना तो सच बोल दूं।
दिल की चाहत नई मैं पुराना भी था ।।
मैं फकीरी में था ये वजह भी सनम।
रंग गोरा भी था संग खजाना भी था।।
दर बदर ठोकरों ने सिखाया सबक।
इश्क सच्चा नहीं वो बहाना भी था।।
प्यार करती प्रखर लौट आना भी था ।
मेरे दिल में तुम्हारा ठिकाना भी था।।
– सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर ‘