दिल जो दिल से कभी लगाओ तो।
दिल की चाहत जरा बताओ तो ।
पास अपने मुझे बुलाओ तो।
भूल जाना कि क्या है ये दुनियां
दिल जो दिल से कभी लगाओ तो।
ना दिखेगा अंधेरा शहरों में।
दीप घर घर अगर जलाओ तो।
प्यार क्या है ये जान जाओगे।
देख के मुझको मुस्कुराओ तो।
तेरे आंखों में डूब जाऊंगा।
अपने आंखों से मय पिलाओ तो।
हां असर प्यार का भी आएगा।
दिल को कागज़ में जो गढ़ पाओ तो।
ये ग़ज़ल भी यूं मुकम्मल होगी।
आप दिल से जो गुनगुनाओ तो।
आज “दीपक” बनोगे तुम शायर
ज़ख्म अपना यहां दिखाओ तो।
©®दीपक झा “रुद्रा”