दिल को बत्तमीज़ न कहें तो क्या करें
दर्द जब हद से गुजर जाए तो क्या करें
वो मुझे गैर कभी कह जाए तो क्या करें,
हम लाख चाहे उन्हे किनारे पर ले आना
बीच मझदार खुद डूबना चाहे तो क्या करें,
बड़ा मुश्किल है अपने दुख को दुख कहना
वो हंस कर मेरी बात टाल दे तो क्या करें,
निगाहें धोखा दे गयीं जो मर मिटा उनपे
वो देख कर हमे मुह छिपा ले तो क्या करें,
ऐसी दिल्लगी भी क्या, खुद का होश न हो
दिल को हम बत्तमीज़ न कहें तो क्या करें,
अब हालात ऐसे हैं कि मै भी न चाहूं देखना
मजबूरी को कुछ भी कह दो तो क्या करें,
ज़िन्दगी में कुछ वैसा ही छोड़ देना बेहतर है
जो मिला ख़ुश रहो, जो न मिला तो क्या करें,
………………….
निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 23 अप्रैल, 2017