$$~~ दिल को छूती -बेटी की बातें~~$$
ऑफिस से थक कर
जब में पहुंचा अपने घर
तो था बड़ा
परेशां
सोचा की थकावट उतार कर
खुद को संभाल लूं
सोच कभी पूरी
नहीं होता
सब जानते हैं
बस पल बिता था
की मेरी नन्ही सी परी
लिपट गयी भाग कर
पापा आये, पापा आये
कुछ पल तो मैंने
उस के संग थे बिताये
उस की ख़ुशी के लिए
वरना वो कहती है
मम्मी क्या पापा
घर में बस सोने की लिए आये
सुन चूका था में
इन शब्दों को कई बार
पर क्या करून था बड़ा लाचार
सामने सुनकर उस की
माँ से में हो गया और भी लाचार
भूल गया अपनी थकावट
ले चला उस को बहलाने को
कभी कंधे पर
और कभी थोडा बाज़ार
मन था बड़ा व्याकुल
इस विपदा को कैसे कहूं
कौन सुनेगा मेरी
क्यूं की सब का मुझ पर
जो पड़ गया भार
नहीं तोड़ सकता था
उस मासूम के कथन को
नहीं ला सकता था
आंसू उस की आँखों पर
भूल गया सब कुछ
बस याद रहा तो वो बचपन
जो मैने कभी
बिताया था
अपने पापा के कंधे पर चढ़कर
समझ सकता हूँ वो
कल्पना कर सकता हूँ वो
जिस की फ़रियाद में
न जाने कितने
मासूम से बच्चे
जिन के पापा मेरी तरह
और उनकी तरह तो रोजाना
घर से निकलते हैं
इस पापी पेट की खातिर
सहन करते हैं
ऑफिस की न जाने कितनी बाते
जो खुद को गवारा नहीं होती
बस उन चेहरों के
लिए
यह जिन्दगी तो है..बस जीनी पड़ती ….
अंत में..
जिन्दगी तो जिन्दा दिली का नाम है दोस्त
मुर्दे क्या खाक जिया करते हैं…
हम तो सफर पर रोजाना निकलते हैं
यह सोच कर…की जिन्दा हैं तो हैं ??
वरना कफ़न में लिपट कर मिला करते हैं !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ