दिल को गिरवी दे रखा है
ख़ुद को धोखा देकर रखेगे , कब तक?
उस चाँद को दिल मे हम रखेगे, कब तक?
जिसको जाना था, न आयेगे वो चले गए हैं
हम रह पर भला नज़र रखेगे, कब तक?
इस इश्क़ बदौलत ये आलम अब होता है
हर चेहरे में वो चेहरा देखेंगे , कब तक?
वो कहा गए-आए? अब क्या मतलब है
और लेखा-जोखा हम रखेगे, कब तक?
वो घूमते है जहा भी उनका मन करता है
बंद कमरे में खुद को हम रखेगे, कब तक?
दिल को अपने अब मैंने गिरवी दे रखा है
इसको उस चौखट पे हम रखेगे, कब तक?
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निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 14 जुलाई, 2017