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14 Nov 2018 · 1 min read

दिल कैदी

मुझसे मिलकर रोज कहानी कहता है
मेरे अंदर एक समंदर रहता है

रोज बगावत करने को जी चाहता है
दिल कैदी फिर क्यों जुल्मों को सहता है

इक अरसे से लगता है मैं ठहरा हूँ
कुछ तो है जो चुपके चुपके बहता है

दीवारें छत छज्जे सब तो जर्जर हैं
दिल का बंगला अब तक क्यों नही ढहता है

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