दिल कैदी
मुझसे मिलकर रोज कहानी कहता है
मेरे अंदर एक समंदर रहता है
रोज बगावत करने को जी चाहता है
दिल कैदी फिर क्यों जुल्मों को सहता है
इक अरसे से लगता है मैं ठहरा हूँ
कुछ तो है जो चुपके चुपके बहता है
दीवारें छत छज्जे सब तो जर्जर हैं
दिल का बंगला अब तक क्यों नही ढहता है