*दिल के दीये जलते रहें*
दिल के दीये जलते रहें
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दिल के दीये जलते रहें,
बिछड़ें हैँ जो मिलते रहें।
रोते हैँ जो मन भाते नहीं,
मोहन मुखड़े हँसते रहें।
यादें उर में बसती सदा,
बातें हिय की करते रहें।
नजरों से हैँ नजरें मिले,
भाषा चित की पढ़ते रहें।
मन भाये सावन की झड़ी,
बरखा के मोती गिरते रहें।
मनसीरत की हसरत यही,
सुख के आँसू झड़ते रहें।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)