दिल के जज़्बात
जो भी ख़्याल आता है दिल में
कागज़ पर उतारा करता हूं
देखता हूं जो भी चेहरा मैं
उसे पढ़ने की कोशिश करता हूं।।
जो पत्ता गिरता है पेड़ से
उसकी तड़प महसूस करता हूं
जो फूल खिलता है डाली पर
उसकी भी खुशबू महसूस करता हूं।।
पत्तों पर ओस की वो बूंद भी
मुझे आकर्षित करती है
छोड़कर जो उन पत्तों को
निशान भी नहीं छोड़ती है।।
जब पड़ती है सूरज की किरणे
महसूस करता हूं गर्मी उसकी
जब छूती है तन को ठंडी हवाएं
महसूस करता हूं चुभन उसकी।।
महसूस करता हूं उस
पहाड़ की सहनशीलता
जो बरसों से बर्फ से
लदा रहता है हमेशा।।
किरणे पड़ती है सूरज
की जब उस बर्फ पर
आंखें चौंधिया जाती है
देखकर चमक हमेशा ।।
देखकर इन नजारों को
आंखें भी तृप्त हो जाती है
दिल से निकलें जो जज़्बात
उनसे कविता बन जाती है।।