दिल की क़िताब
दिल की क़िताब खोल कर तो देखो कितनी म़ोहब्बत भरी पड़ी है।
तुम अब तक जिससे अन्जान थे ।
अपने ही जुनून से परेश़ान थे।
तुम्हें अब तलक़ ये इल्म़ नहीं था ।
कि तुम्हारा ग़म बाँटने वाला भी इस क़िताब में बसता है।
जो तुम्हारे अलम़ और रुस़वाई पर अश़्क बहाता है ।
तुम्हारी म़सर्रऱत और शोहरत पर खुश होता है ।
जो द़िलो जान से तुम्हारी च़ाहत का तलब़गार है ।
जिसे हर घड़ी तुम्हारा इंतजार है।