दिल की रहगुजर
**ग़ज़ल**
इस दिल की रहगुजर से , गुजर नहीं जाता,
गुजरता है हर गली मगर ,इधर नहीं जाता ।
सजाये हैं हमने भी चमन ए गुलिश्ता ,
ख्वाबों के चमन में कोई , गुजर नहीं जाता।
क़ाबिलियत के दीप हमने भी जलाए है ,
जज़्बातों का दर्द यूँ , बिखर नहीं जाता।
छुपाये फिरते है ज़माने की नजर से ,
ये इश्क और मुश्क ,बेखबर नहीं जाता।
इल्ज़ाम की बारिश में यूँ तो भीग रहे हैं हम,
कैसा भी बुरा वक्त कभी , ठहर नहीं जाता।
बेमुरब्बत से भरी है ये, दिल की बेबसी,
मुफलिसी के साए में, बसर नहीं जाता।
बेगैरत है ये ज़िन्दगी, कब रुसवा हो जाए ,
घर के बड़ों के साए का , असर नहीं जाता।
दर्द-ए-दिल की रातों में, घुट घुट जिए हैं हम ,
उजड़े घरों से परिंदा भी , गुजर नहीं जाता।
जाते है शौक से शमा के पास परवाने ,
चिराग़ में दफ़न कोई , जिगर नहीं जाता ।
हसरत है ‘असीमित’, उसे पाने की,
बेखयाली का ये आलम , मगर नहीं जाता।
**-डॉ मुकेश असीमित**