“ दिल की भड़ास “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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अकर्मण्यता ,स्तब्धता ,मौनता,अशिष्टाचार ,नकारात्मक भंगिमा और नजरअंदाज के अवगुण भी प्रायः -प्रायः कई व्यक्तियों में व्याप्त होते हैं ! वैसे इन सारे अवगुणों का अंदाजा लगाने वाले मनोविज्ञानिक या मनोचिकित्सक तो होते ही हैं पर साधारण व्यक्ति भी इसके विश्लेषण करने में नहीं चूकते !
आज्ञाकारिता ,तत्क्षण कार्यों का निपटारा करना और उचित समय की पहचान के अभाव में ही अकर्मण्यता छलकती है ! अपने परिवार ,समाज और मित्रों के बीच रहकर अपनी प्रतिक्रियों को उजागर नहीं कहना स्तब्धता और मौनता का परिचायक होता हैं ! हम जब श्रेष्ठ ,समतुल्य और कनिष्ठों को आदर ,सम्मान और प्यार देने से कतराते हैं तो भला हमें कौन नहीं पहचानेगा कि हम शिष्टता से कोसों दूर हैं ?
अच्छी बात पर जब हम तरह -तरह की आलोचना करते हैं तो हमारी नकारात्मक भंगिमा उभरने लगती है ! यहाँ तक की आपकी नजरें बता देती हैं कि आप लोगों की अवहेलना कर रहे हैं ! हम साधारणतः एक दूसरे के निकट होकर जान जाते हैं ! पर इन चीजों को जानना और पहचानना वह भी चार दिनों के अभ्यंतर ? यह बहुत कठिन कार्य है !
यह प्रक्रिया “सर्विस सिलेक्शन बोर्ड” ,जहाँ सैनिक ऑफिसर का सिलेक्शन होता है , वहाँ अपनाई जाती है ! इस कठिन कार्य के लिए एक “साइकालजिस्ट पेनल” होता है ! उनकी पेनी नजरों से कोई बच नहीं सकता ! परंतु ,हम इतने दक्ष नहीं होने के बावजूद भी इन सारी चीजों का आंकलन कर लेते हैं !
फेसबुक में अनेकों डिजिटल मित्र हैं ! जिनका दीदार शायद ही कभी हो पाता है ! जो लोग अकर्मण्यता ,स्तब्धता ,मौनता,अशिष्टाचार ,नकारात्मक भंगिमा और नजरअंदाज के अद्भुत गुणों से परिपूर्ण हैं उन्हें पहचानना कोई नामुमकिन नहीं है ! अधिकाशतः लोग ना पढ़ते हैं ना लिखते हैं ! कई -कई तो एसे नेपथ्य में छुप गए हैं कि लगता है रामायण काल के कुम्हकरण का फिर से अवतरण होगया है !
हम समय – समय पर हम अपनी मन की भड़ास निकलते हैं ! कभी व्यंगों की विधाओं से ,कभी लेखों के माध्यम से और कभी कविता और गीतों के सुर में पिरोकर लोगों को कहते हैं ! Laughter is like medicine which must be applied with caution. Make sure that you are laughing for yourself without targeting the people. A leader who is always miserable, unhappy and frustrated is not at all fit to lead the organization anymore. I always see some of my friends and acquaintances react and write oddly on Facebook. It is found often in learned men also.
They don’t stay in the fence of Decency……and…….Decorum leaves the wrong impression on other friends. That is why I cultivated this gesture. I feel better projecting myself as the clown so that nobody gets hurt. Whatever I write …it all related to my personal reaction and is full of irony. @परिमल
हास्य का प्रहार लोगों पर न करना
उचित है अपनो पे हंसके लोगों को हंसाना ! @परिमल
पर बहुत कम लोग हैं जो पढ़ते हैं ! कोई पढे या ना पढे हम तो अपनी “ मन की भड़ास “ निकलते रहेंगे !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
30.08.2021.