दिल की बैचेनी
दिल की बैचेनी का कोई ईलाज नहीं
आया है उन पर प्यार उन्हें प्यार नहीं
वो क्या जाने हम पर क्या गुजरी है
चाहा है हर पल उन्हें एहसास नहीं
कल तक जो था अपना हुआ बेगाना है
आता जब यह ख्याल होता एतबार नहीं
किया जो कसूर मैंनें उन्हें ना रास आया
मिन्नतें कर ली हजार आया रहम ही नहीं
सोचता हूँ कभी क्यूँ ना उन्हें भूला ही दूँ
सोच कर सोचते रहती जिस्म जान नहीं
उनकी मजबूरी हैं या कोई ओर वजह
पूछता हूँ तो कहें नहीं ऐसी बात नहीं
हम तो दीवाने हैं पागल और मस्तानें हैं
पागलपन का हुआअसर एक बार नहीं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत