दिल की बताते हो नही
****** दिल की बताते हो नहीं (ग़ज़ल) ******
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क्या बात है जो आप हमको भी बताते ही नही,
हमराज होकर भी कभी मन की बताते ही नहीं।
वो लूट गई दौलत जो कमाई थी कभी तो प्रेम में,
सब हार कर बाज़ार में कुछ भी बताते ही नहीं।
आँखें बताती राज तेरे जो छिपाये हैं सभी,
इजहार करना चाहते हो दिल की बताते ही नहीं।
सीना हुआ घायल यहाँ पर प्यार तेरे में सनम,
रख चीरकर अपना हृदय जख्मी बताते ही नहीं।
संध्या हुई है यार मनसीरत सदा तेरी सुबह,
डोली सजी दुल्हन बनी पत्नी बताते ही नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)