दिल की डगर पर अजनबी का आना-जाना हो गया
दिल की डगर पर अजनबी का आना-जाना हो गया
गुलशन में गुल भी खिल गए मौसम सुहाना हो गया
देखा नहीं जाना नहीं सोचा नहीं समझा नहीं
यूँ ही तेरी क़ातिल नज़र का मैं दिवाना हो गया
नफ़रत कहीं धोके कहीं झूठे कहीं हैं आदमी
इस दौर में मुश्किल बहुत रिश्ता निभाना हो गया
बातें सदाक़त की मेरी हरकत शराफ़त की मेरी
क्यूँ खामखां बेकार में दुश्मन ज़माना हो गया
साज़िश शिकारी की रही या ये शिकम की आग थी
यूँ जाल में फंसने का कारण आबोदाना हो गया
मतलब फ़क़त अपनों से है मतलब फ़क़त है काम से
हर आदमी अब शह्र का काफ़ी सयाना हो गया
वो जंगलों के बीच में रहता रहा तन्हा मगर
मालूम दुनिया को भला कैसे ठिकाना हो गया
हमदर्दियां औ’र नेकियाँ करना कभी छोड़ो नहीं
दिल जीतने का ये हुनर बेशक़ पुराना हो गया
राज़ी उन्हे करना पड़ा ‘आनन्द’ वो नाराज़ थे
अच्छा हुआ जो इस तरह मिलना-मिलाना हो गया
– डॉ आनन्द किशोर