दिल की गहराई।
गर होता कोई भी पैमाना दिल की गहराई नापने का।
तो थक जाते वह भी बड़ा मेरी चाहत को नापते-नापते ।।1।।
कोई कह दे उनसे ना आजमाइश में डालें ऐसे हमको।
वह बदगुमाँ हो गए है बहुत अब मुझको जांचते-जांचते ।।2।।
एक उसके ही खातिर हम अपनों में गैर से हो रहे हैं।
वह है कि थकते ही नहीं इब्तिला-ए-इश्क में हमें डालते-डालते।।3।।
पल भर में ही खत्म कर दिया उसने बरसों का आकीदा ।
मुश्किलों से जो बना रहा था अन्देशों की छन्नी में छानते-छानते।।4।।
मेरी जिंदगी में सुकूँ के पल ऐ खुदा तूने लिखे ही नहीं।
थक गया हूँ बहुत अब मैं खुद से ही इतना भागते-भागते।।5।।
जाकर देखा झोपड़ी केअन्दर वह बूढ़ा बीमार था बड़ा।
शायद खानें के लिए कुछ कह रहा था कांपते-कांपते।।6।।
मुन्तजर है आंखें मेरी उनकी आमद पर ना जाने कब से।
हद कर दी नजरों ने मेरी भी राह मे उनको ताकते-ताकते।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ