किससे कहें
शिकवे है शिकायत है
मुझे इस जिंदगी से
है अदावत भी मुझे
अपनी इस जिंदगी से।।
किससे कहूं में ये शिकवे
जो है मुझे मेरे अपनो से
पूरे नहीं हो सके जो कभी
मेरे देखे हुए उन सपनों से।।
शिकवे है बहुत सारे
मुझे अपने आप से भी
दे रहे पीड़ा बहुत, जैसी
होती नहीं आग से भी।।
कोई तो होगा इस जहान में
जिससे कह पाऊंगा मैं शिकवे अपने
वो बेझिझक मुझे सुना पाए
और मैं भी उसे सुनाऊं शिकवे अपने।।
हल्का होगा दिल का बोझ
जब बांटूंगा किसी के साथ
कोई तो चाहिए बांट सके
जिससे हम दिल की हर बात।।
चैन की सांस लेंगे हम भी
छोड़ कर इन शिकवों का बोझ
दिन रात घूमकर ज़हन में
परेशान करते रहते हैं जो रोज़।।
इन्तज़ार कर रहा हूं मैं
अभी भी उस एक शक्स का
मिलेगा जब भी वो मुझे
समय होगा वो ही रक्स का।।