दिल का परिंदा
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******* दिल का परिंदा ********
वादियों में था मिला दिल का परिंदा।
घूम कर है उड़ गया दिल का परिंदा।
साथ मेरा छोड़ कर चलता बना वो,
दे गया ऑंसू सदा दिल का परिंदा
प्रेम धन जोड़ा बहुत हमने यहाँ पर,
लूटकर है चल दिया दिल का परिंदा।
धार बहती जिंदगी की थी जहां में,
रोककर चलता बना दिल का परिंदा।
यार मनसीरत सदा बनता निशाना,
घाव गहरे दे चला दिल का परिंदा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)