दिल का दर्द मैं दिल में पाले बैठी हूँ
दिल का दर्द मैं दिल में पाले बैठी हूँ,
गम तेरी मोहब्बत का संभाले बैठी हूँ।
खुद को उलझाये रखती हूँ कामों में,
तेरी यादों पर लगा कर ताले बैठी हूँ।
तन्हा होते ही मेरी आँख भर आती है,
अपने चेहरे पर यूँ घूँघट डाले बैठी हूँ।
तुम नहीं आओगे लौटकर जिंदगी में,
दिल से क्या ख्वाबों से निकाले बैठी हूँ।
जुदा होकर तुमसे दर्द होता था सीने में,
तेरी यादों के मैं फोड़ कर छाले बैठी हूँ।
अँधेरा कर गए थे तुम बेवफाई से राहों में,
उन राहों में कलम से किये उजाले बैठी हूँ।
लिखी है किस्मत मैंने अपने हाथों से अब,
सुलक्षणा दिल को हवा में उछाले बैठी हूँ।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत