दिल का आलम
दिल का आलम , कैसे समझाए।
बात करने से भी , हम शर्माए।
देखने ही तुझे धड़कनें बढ़ जाए
रात में ख्वाब में भी नजर आए।
बहुत मुश्किल हो रहा है जीना अब
जी रहे हैं लबों पर ताला लगाए।
कभी एक नज़र तू ज़रा देख मुझे
शायद चिंगारी वहां भी भड़क जाए।
मुठ्ठी भर इश्क़ होता ही है सब को
मानते हैं सब , लेकिन सर झुकाए।
सुरिंदर कौर