दिल और तुम
तू थमा देती जो आँचल सनम,
अश्क मेरे फिर यहाँ निकलते नहीं,
जां निकलती मेरी तेरे दमन में,
टूटे दिल के टुकड़े फिर मिलते नहीं
मेरे अल्फ़ाज़ उनपर असर करते नहीं,
एहतराम भी वो किसी और का करते नहीं
खबर पहुँच जाती है फिज़ाओ में घुलती हुई,
जब जबां से वो कुछ कहते नहीं
समझना मुझको खुद मेरी फ़ितरत में नहीं,
फिर वो क्या समझेंगे , जो मुझे जानते नहीं,
शीने से लगाऊ तो , धड़कन सुन लेते है,
ज़िंदा बच जाऊ जालिम चाहते नहीं,
दिल है की तन्हाई चाहता है ,
और एक वो है जो चुप होते नहीं,
दिल बेचारा किसी से क्या कहे,
अल्फाज़ो की जबां इसको कभी मिलती नहीं,
“साहिब” क्यों परेशान है गमो बेज़ारी से,
देखा है मैंने ये हर वक़्त साथ चलते नहीं,