दिल आईना है औज़ार नहीं
दिल आईना है औज़ार नहीं
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वो पायल क्या जिसमें झंकार नहीं,वो रिस्ता क्या जिसमें प्यार नहीं।
जितने टुकडे़ हों उतने रूप करे,दिल आईना है औज़ार नहीं।।
आहों के तुम भाव लगाने वालो,
चाहों को नित तड़फाने वालो,
मन से मन को ही उलझाने वालो,
दीमक बन छुपके खाने वालो,
ऊँचाई से गिर शोर मचाओगे,पर होगा कोई उस पार नहीं।
प्रारब्ध तुम्हारा पीछा करता है,
बल से छोड़ा खींचा करता है,
ये तिमिर छिपाए कितना ही खुद को,
प्रकाश सदैव नीचा करता है,
ताक़त पर अपनी इतराने वालो,झरने चट्टानों की हार नहीं।
प्रेम-स्पर्श कभी भी भुला ना जाए,
बिन झूले इससे झूला जाए,
जीवन तो सुख-दुख का वो सपना है,
जो खुली आँखों से देखा जाए,
दीवानापन झुकने का नाम नहीं,ये सागर है पानी की धार नहीं।
आर.एस.प्रीतम