” दिल्ली की खुशख़बरी “
“बहुत बड़ी खुशख़बरी आयी,
दिल्ली से आज़ादी की,
दफन करो घर में घुसकर उनको,
जो अमन छीन रहे वादी की,
चीर,साल,देवदार, जो तार-तार कर दिए,
डल की करुण पुकार सुन,
उन पर आज वार कर दिए,
आतंकवादियों के हौसले को पस्त कर दिए,
मौका मिलते ही,शौर्य प्रदर्शन ज़बरदस्त कर दिए,
गोलियों से दुश्मनो पर बौछार कर रहें,
छुपके नही सामने से वार कर रहें ,
ऊँची -ऊँची चोटियाँ,बिखरती चाँदनी,
स्वर्ग सी धरा, जो बन गई थीं छावनी,
वादी -ए कश्मीर का क्या हाल कर रहे थे,
स्वर्ग की जमीं को खूँ से लाल कर रहे थे,
भून दिए सैनिकों ने बारूदों के बाज़ार,
कौड़ियों के मोल किए,आतंक के व्यापार,
सामान बाँध ज़ंग को कब से बैठे थे तैयार,
बंदूक तेल दी हुई,थीं चाकुओं में धार,
छुप -छुपके मारते थे उन्हें होगी अब मलाल,
सीने पर खड़े है उनके भारत के वीर लाल,
देश की आंखें नम थीं बरसों,
देख शहीदों की कुर्बानी,
खून उन्हीं का ना उबला,
जिनके रगों में था पानी,
अमन की धरा पर घुसपैठ कर,
भूचाल कर कर रहे थे,
रोज़ रोज़ एक नया बवाल कर रहे थे,
भौकते पागल कुत्तों का शिकार हो रहा है,
सबका है इलाज जो जहाँ बीमार हो रहा है,
गद्दारो के लहू की बूँद भारत में गिरना है नहीं गवारा ,
घर में गद्दारो के घुसकर ही मार हो रहा है,
गीदड़ों का शेर से शिकार हो रहा ,
देशभक्ति भाव का उद्गार हो रहा,
अमन के लिए युद्ध का ललकार हो रहा,
शत्रु को चीरने का हुंकार हो रहा,
पत्थर बाजी रुकते खुशियाँ लौटेंगी फ़िर वादी की,
नमन है उनको हक़ दे डाला,सैनिक को आज़ादी की”