दिल्ली की कहानी मेरी जुबानी [हास्य व्यंग्य! ]
आओ चलो बीते कुछ सालों की
दिल्ली की कहानी सुनाती हूँ।
दिल्ली में रहती हूँ मैं,
दिल्ली की हाल बताती हूँ।
दिल्ली में इन कुछ सालों में
काफी बदलाव देखने को मिला है।
हमलोग को मुफ्त के नाम पर,
काफी ठगा गया है।
हमारे टैक्स के पैसों को ,
हमें ही मुफ्त में कहकर दे देना ,
यह कला भी यहाँ खुब चला है।
धरातल पर काम हो न हो ,
पर प्रचार में इसको बढा-चढा कर
दिखाने की भी यहाँ हवा खुब बहा है।
मुफ्त में राशन ,मुफ्त में पानी
मुफ्त में बिजली ,मुफ्त में परिवहन,
के नामों पर हमें लूटा खुब गया है।
आजकल हमलोग मुफ्त के चीजों ,
के नाम पर ही खुश हो जाते है।
बिना नाप तोल किये हुए ही
उछल -उछल जाते हैं।
हम आज ऐसे लोग हो गये हैं,
जो अपने बच्चे को कहते हैं
कि अगर काम नहीं करोगे
तो तुम्हें मुफ्त में नहीं खिलायेंगे।
पर खुद को हर चीज मुफ्त में चाहिए
यह सोचे बिना कि मुफ्त का हर एक चीज भीख बराबर होता है।
माना किसी की मदद करनी चाहिए,
किसी से मदद लेनी भी चाहिए ,
इसमें कोई बुराई नहीं है।
पर किसी को मुफ्तखोरी का लत लगा देना ,
और किसी को अपाहिज बना देना ,
यह हमारे देश के लिए बड़ा नुकसानदेह है।
यह बात हमें कोन समझाएँ !
हमने कालिदास के बारे में सुना,पढा था,
की वह जिस डाल पर बैठे थे उसी डाल को काट रहे थे ।
यह पढ- सुन हमने काफी हँसा था, हँसने वाली बात भी थी।
पर आज अगर अपने अन्दर हम झांक कर देखें,
तो वही काम हम लोग भी कर रहे हैं
इस मुफ्त के भूल -भूलैया में पर कर,
हम अपने दिल्ली को बर्बाद कर रहे हैं,
या यों कहे की हम इसे खोखला कर रहे हैं।
अब हमने लोग मूलभूत आवश्कता,
के लिए लड़ना छोड़ दिया है।
अब हमारा ध्यान उन आवश्यकताओं
की तरफ नही जाता है,
जो हमारे दिल्ली की शान हुआ करती थी,
जैसे सड़क, अस्पताल,स्कूल ,पार्क स्मारक आदि ।
कभी जो लोग दूर-दूर से,पढने,ईलाज कराने
और यहाँ के पार्क, स्मारक देखने लिए आते थे,
आज इन चीजों की स्थिति जर्जर होती जा रही है।
धरातल पर स्थिति सुधारने की जगह आज प्रचारों पर पैसे खर्च किये जा रहे हैं।
आज यहाँ फिल्मी पोस्टर से ज्यादा तो ,
दिल्ली सरकार के पोस्टर लगाये जा रहे हैं
काम धरातल पर हुआ हो या नहीं ,
पर इसको बढ-चढ कर
गिनवायें जा रहे हैं,
और हम सब प्रचारों को देख ,
ताली बजाए रहे हैं,
पार्क अस्पताल और सड़क पर
गंदगी देख नाक -भों सिकुड़ा रहे हैं। थोड़ी-बहुत बातें बनाकर मुफ्त के पीछे जा रहे हैं।
क्योंकि हमारे यहाँ वोट अब
इन नाम पर नही मिलता है
बल्कि हमें मुफ्त मे क्या मिल
रहा है ,
इसके नाम पर सब वोट करते हैं।
यहाँ कोरोना के समय में
अस्पतालों के लेकर काफी हंगामा हुआ था,
आक्सिजन को लेकर काफी हाहाकार मचा था,
कई जानें भी गई थी,
कई अपने ने अपनो को खोया था ,
उनका दर्द बहुत गहरा था।
हमें अपनी सरकार पर गुस्सा
भी बहुत आ रही थी,
हमारी दिल्ली में कई राज्यों से लोग ईलाज करवाने आते थे,
वहाँ आज अपने लोगो की ईलाज
नही हो पा रही थी।
पर कोई बात नहीं है,
हम लोगो का दिल बहुत बड़ा है।
हम सब इसे भुला देगें और
फिर मुफ्त के पीछे लग जाएंगे।
भले ही जमाना हम पर
हँसे तो हँसे ,
भविष्य रोए तो रोए,
पर हम मुफ्त के नाम पर ही
खुश हो जाएंगे और गुनगुनाएगें।
छोड़ो लोग हम पर हँसते है तो हँसने दो ,
बेकार कहते हैं तो कहने दो,
दिल्ली की अर्थ-व्यवस्था,
बिगड़ती है तो बिगड़ने दो।
बदलते है खण्डहर में स्मारक
तो बदलने दो,
पर आज हमें मुफ्त का खाने दो,
दोस्तों के साथ बस मै बैठकर
मुफ्त के मजे उठाने दो,
कल का कल देखेगें
जब हमारे पास बसें नही रहेंगे,
तो बच्चो को समझा देगें,
पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
इसलिए पैदल चलना जरूरी है। अभी मुफ्त के बातों पर खुश हुए हैं,
कल कोई और बातों पर खुश हो जाएंगे।
इसी तरह बहलते,फिसलते बिना सोचे समझे हम वोट गिराएगें
कुछ सही गलत हो गया तो
कह देगें हम दिल्ली के लोग हैं
दिमाग से नही, दिल से फैसला लेते हैं यार।
~अनामिका