दिलों से दिलों को मिलाती है होली
दिलों से दिलों को मिलाती है होली,
मुहब्बत की रस्में निभाती है होली।।
युवा हों कि बच्चे कि नारी या बूढ़े,
सभी के ही मन को लुभाती है होली।।
गिले और शिकवे सभी को भुलाकर,
मुहब्बत के रंग में नहाती है होली।।
अगर फाग हिन्दी की रंगत बढ़ाये,
तो उर्दू के नग़्मे भी गाती है होली।।
रहे पास तुम तो रहे शादमाँ हम,
अकेले में हमको सताती है होली।।
भले एक दूजे के मजहब जुदा हों,
हमें एक होना सिखाती है होली।।
कभी “अश्क” रूठे किसी से कोई जो,
तो रूठे हुए को मनाती है होली।।
©अश्क चिरैयाकोटी