दिलों में दूरियाँ
आज सुबह से ही सरिता बहुत व्यस्त थी,जल्दी जल्दी घर के कामों को निबटा रही थी।उसके हाथों में यूँ कहे कि मशीन लगा हुआ था।जितनी जल्दी जल्दी वह कामों को निबटा रही थी।वह आश्चर्य में डाल रहा था।नाश्ता बनाकर बच्चों को खिलाकर टिफिन पैक कर उन्हें स्कूल जल्दी जल्दी पहुँचाकर घर आई।उसके दिमाग में घर के सारे काम घूम रहे थे।कल करवा चौथ भी था उसे ही सारी तैयारियां भी करनी थी।उसी शहर में रहने वाली उसकी पाँचों ननदें उसके साथ आकर त्योहार करने वाली थी।उनका मानना था कि भाभी अकेले है तो वह सभी सरिता के साथ मिलजुलकर व्रत मनाने आ रही थी।
सरिता को कभी कभी लगता कि वह अकेले ही आसानी से व्रत कर लेगी।ननदों का आना उसकी जिम्मेदारियों व्यस्तताओं में बढ़ोतरी तो करता ही था।अगले तीन -चार महीने का उसका बजट बिगाड़ देता था।क्योंकि भाभी होने के नाते सबके लिए कपड़े शृंगार का सामान खरीदना, त्योहार के लिए फल,मिठाई का इंतजाम सब कुछ उसे ही करना होता।और बाद में उलाहने ताने भी सुनने पड़ते।
परंतु सरिता सोचती की परिवार है तो यह सब चलता ही रहेगा तो वह खुशी खुशी तैयारी में मशगूल थी।सारे काम निबटाकर वह बगल की एक लड़की को बुलाकर मेहंदी लगवाई।मेहंदी लगवाकर जैसे ही वह उठी तो दरवाजे की घंटी सुनाई दी।और जब वह दरवाजे पर पहुँची तो देखा कि उसकी दो ननदें अपने बच्चों के साथ दरवाजे पर खड़ी थी।उन्हें अंदर बैठाकर वह उनके साथ बैठ कर बात करने लगी।वह सोच रही थी थोड़ी मेहंदी सूख जाती है तो वह चाय नाश्ता देती है तब तक कामवाली भी आ जायेगी।तब तक उसकी बड़ी ननद ने बोला क्या भाभी बातों से ही पेट भरने का इरादा है क्या? कुछ नाश्ते पानी का इंतजाम नही दिख रहा।सरिता हड़बड़ाते हुए बोली बस दीदी अभी लाती हूँ।और रसोई में पहुँच कर ना चाहते हुए भी अपनी मेहंदी को धोकर नाश्ते का इंतजाम किया।तब तक काम वाली आ गयी,उसने कहा अरे दीदी क्यों आपने हाथ धो लिया।उनसे बोल दिया होता तो वह खुद ही नाश्ता निकाल लेती।हाथ धो लिया बेकार में ही।
सरिता मुस्कुराकर रह गयी।व्रत वाले दिन सुबह से ही वह काम में लगी थी।बच्चों के नाश्ते खाने के इंतजाम के बाद वह शाम के पूजा की तैयारी में जुट गयी।कई बार उसका मन हुआ कि वह ननदों को अपनी सहायता करने के लिए कहे,पर संकोचवश वह कह न सकी।शाम होते होते उसकी हालत खराब हो चुकी थी,एक तो सारा दिन निर्जला उपवास और ढेर सारे कामों के बाद वह हिलने के हालत में नही थी,तभी सरिता का पति जो दूसरे शहर में नौकरी करता था,उत्साह के साथ घर पहुँचा ।
परन्तु सरिता की हालत देखकर वह परेशान हो गया।उसने देखा कि सरिता अकेले कमरे में बुखार से बेसुध थी।उसकी बहनें हॉल में गप शप कर रही थी।किसी को जरा भी फिक्र नही थी कि सरिता कहाँ है?
मनीष ने अपनी बहनों को देखकर गुस्से में बोला वाह दीदी ये उत्सव मनाने का बढ़िया तरीका है।आप सब मजे करो और यहाँ आप सबकी भाभी मर रही या जी रही कोई फिक्र ही नही।
सारी बहनें एकदम से चुप हो गयीं।
और उत्सव दिलों में दूरियाँ लेकर आ गया।और यह दूरियाँ उत्सव के कारण नही बल्कि समझ की कमी के कारण थी।