दिलचस्प आदमी
जून की तपती दोपहरी में बाज़ार की तमाम दुकानें बंद थीं। कुछेक दुकानों के सटर आधे गिरे हुए थे। जिनके भीतर दुकानदार आराम कर रहे थे। एक व्यक्ति प्यासा भटक रहा था। एक खुली दुकान देखकर उसने राहत की सांस ली।
“लालाजी प्यासे को पानी पिला दो,” थके हारे राहगीर ने मेवे की दुकान पर बैठे सेठजी से कहा। दुर्भाग्यवश तभी बिजली भी चली गई।
“बैठ जाओ, अभी नौकर खाना खाकर आता ही होगा। आएगा तो तुम्हे भी पानी मिलेगा और मेरा गला भी तर होगा।” लालाजी ने फ़रमाया और हाथ के पंखे से खुद को हवा करने लगे।
लगभग दस-पन्द्रह मिनट गुज़र गए।
“लालाजी और किनती देर लगेगी?” क़रीब दस मिनट बाद प्यास और गर्मी से व्याकुल वह व्यक्ति पुन: बोला।
“बस नौकर आता ही होगा।” लाला जी स्वयं को पंखा झालते हुए आराम से बोले।
“लालाजी, दुकान देखकर तो लगता है, आप पर लक्ष्मी जी की असीम कृपा है।”
व्यक्ति ने बातचीत के इरादे से कहा।
“पिछली सात पुश्तों से हम सूखे मेवों के कारोबार में हैं और फल-फूल रहे हैं।” लालाजी ने बड़े गर्व से अपनी मूछों को ताव देते हुए जवाब दिया।
“आप दुकान के बाहर एक प्याऊ क्यों नहीं लगा देते?”
“इससे फायदा!”
“जो पानी पीने आएगा, वो हो सकता है इसी बहाने आपसे मेवे भी ख़रीद ले!”
“तू ख़रीदेगा?”
“क्या बात करते हैं लालाजी?” वह व्यक्ति हंसा, “यहाँ सूखी रोटी के भी लाले पड़े हैं, और आप चाहते हैं कि मैं, महंगे मेवे खरीदूं। ये तो अमीरों के चौंचले हैं।”
“चल भाग यहाँ से, तुझे पानी नहीं मिलेगा।” लालाजी चिढ़कर बोले।
“लालाजी, जाते-जाते मैं एक सलाह दूँ।”
“क्या?”
“चुनाव क़रीब हैं, आप राजनीति में क्यों नहीं चले जाते?”
“क्या मतलब?”
“मैं पिछले आधे घंटे से आपसे पानी की उम्मीद कर रहा हूँ मगर आपने मुझे लटकाए रखा!” वह व्यक्ति गंभीर स्वर में बोला, “राजनीतिज्ञों का यही तो काम है!”
तभी बिजली भी लौट आई। ठंडी हवा के झोंके ने बड़ी राहत दी और माहौल को बदल दिया।
“तू आदमी बड़ा दिलचस्प है बे!” लालाजी हँसते हुए बोले, “वो देख सामने, नौकर फ्रिज का ठंडा पानी ले कर आ रहा है। तू पानी पीकर जाना, वैसे काम क्या करते हो भाई?”
“इस देश के लाखों और विश्वभर के करोड़ों युवाओं की तरह बेरोजगार हूँ।”