दिया तले अँधेरा
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
मेरे द्वारा स्वरचित मेरी तीसरी कविता
विषय:दिया तले अँधेरा
मेरे घर में है दिया तले अँधेरा ,
तेरे घर में भी है दिया तले अँधेरा ,
परिवार में राजनीती -ये दोहरे चेहरे ,
क्या नहीं है ये दिया तले अँधेरा !
ये झूठे और स्वार्थ में लिप्त रिश्ते ,
ये अपनापन जताते -मीठी पर झूटी बातें बोलते रिश्ते ,
इस कलयुग में पैसे को ही धर्म मानते रिश्ते ,
स्वार्थ के लिए एक छत के नीचे रहते रिश्ते ,
क्या नहीं है ये दिया तले अँधेरा !!
चुनाव के समय पाँव पड़ते ये नेता ,
गरीब -लाचार से इंसानियत दिखाते नेता ,
चुनाव जीतने पर जनता को अपने क़दमों पर बिठाते नेता ,
क्या नहीं है ये दिया तले अँधेरा !!!
धर्म के नाम पर डराते और लूटते ये धर्म के ठेकेदार ,
ईश्वर का अवतार लिए लाशों का सौदा करते ये सफेदपोश इंसान ,
आपकी मजबूरी में आपके कपडे उतारते ये खाकी और काले कोट वाले इंसान ,
क्या नहीं है ये दिया तले अँधेरा !!!!!
कहाँ नहीं है दिया तले अँधेरा ,
हाँ -उस सतगुरु के दर पर ,
उस इष्ट की चौखट पर ,
केवल वहीँ है उजियारा -प्रकाश -राह ,
वहां नहीं है दिया तले अँधेरा …!
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान
(यहाँ किसी व्यक्ति विशेष -धर्म विशेष -जाती विशेष या कार्य विशेष पर कोई प्रहार नहीं है ,इस कलयुग में जो चरितार्थ हो रहा है वो सत्य मात्र है )