दिन ख़ामोश, रातें मुखर होती है, साथ उनके, ठंड बेअसर होती है
#सफ़रनामा
दिन ख़ामोश, रातें मुखर होती है
साथ उनके, ठंड बेअसर होती है।
नज़र मिलाके, बहुत कुछ है कहना
मग़र बातें, इधर उधर की होती है।
कहाँ दरमियाँ, सिर्फ छुअन बाक़ी है
मिलन होठों की, अक़्सर होती है।
देखना एक रोज़, एक मोड़ आयेगी
इस राह में, मुलाकात ज़रूर होती है।
क्या है? वज़ह, मेरे इस डर का
हर रिश्ते की, एक उमर होती हैं।
ईश्क़ में, एतबार में, अपनेपन में
दर्द, सितम, तड़प मुक़र्रर होती हैं।
Basant_Malekar